मैडीकल कॉलेज में मैडीसिन विभाग ने एक और मरीज को दिया नया जीवन, 75 वर्ष की बुजुर्ग ठीक होकर वापस घर को लौटी, निरंतर हालत में आ रहा सुधार

75 वर्ष की एक बुजुर्ग महिला ब्रेन स्ट्रोक होने की वजह से कोमा में पहुंच गई। गर्दन से नीचे शरीर का हिस्सा टोटली पैरालिसिस (पूरा लकवाग्रस्त) हो गया। परिजनों ने बेहतर उपचार के मकसद से बुजुर्ग को नाहन से पी.जी.आई. चंडीगढ़ रैफर करवा लिया। फिर परिजन मरीज को पी.जी.आई. से पुनः डा. वाई.एस. परमार मैडीकल कॉलेज एवं अस्पताल नाहन लेकर पहुंचे, तो यहां तैनात महिला डाक्टर अनिकेता शर्मा ने उक्त मरीज में जान फूंक दी। नतीजतन महिला की हालत में सुधार आने के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दी गई है।

दरअसल मैडीकल कॉलेज के मैडीसिन विभाग ने एक और ऐसे मरीज को नया जीवन दिया है, जिसकी परिजन आस खो चुके थे। इससे पहले गत मंगलवार को भी 37 वर्षीय पप्पू नाम के एक ऐसे मरीज की हालत में सुधार के चलते उसे अस्पताल से छुट्टी देकर घर भेज दिया गया, जिसका पूरा लिवर फेलियर हो चुका था और वह भी कोमा में पहुंच चुका था। अब जिला सिरमौर के दुगाना गांव की निवासी 75 वर्षीय नाजरो देवी को मैडीकल कॉलेज के मैडीसीन विभाग ने नई जिंदगी दी है।
मैडीसीन विभाग में तैनात सहायक प्रोफेसर डा. अनिकेता शर्मा ने बताया कि संबंधित बुजुर्ग महिला बी.पी. की दवाइयां लेती थी, जिसे वह बीच-बीच में छोड़ भी देती थी। इसी बीच एकाएक बी.पी. काफी अधिक बढ़ जाने के कारण मरीज को ब्रेन स्ट्रोक के चलते मल्टीपल ब्लॉकेट्स होने के कारण महिला मरीज कोमा में चली गई। गर्दन से नीचे शरीर का पूरा हिस्सा टोटली पैरालिसिस हो चुका था। परिजनों को समझाया गया था कि जो ट्रीटमेंट पी.जी.आई. में दिया जाएगा, वहीं उन्हें यहां भी दिया जाएगा, लेकिन अपनी संतुष्टि के लिए परिजन महिला को चंडीगढ़ ले गए। इसके अगले दिन परिजन दोबारा महिला को चंडीगढ़ से यहां ले आए।
डा. अनिकेता ने बताया कि यहां आने पर महिला मरीज को जनरल महिला वार्ड में दाखिल किया गया। 5 दिनों तक मरीज कोमा में ही रही। किसी भी तरह का कोई भी रिस्पोंड नहीं किया। लिहाजा एक कोमा के मरीज को जिस तरह की नर्सिंग केयर मिलती है, वह दी जा रही थी। साथ ही मल्टीपल ब्लॉकेट्स का ट्रीटमेंट दिया जा रहा था। डा. अनिकेता ने बताया कि करीब 10-11 दिन बाद महिला मरीज ने अपनी आंखे खोल दाएं-बाएं देखना शुरू किया। साथ ही अपनी हाथों और बाजुओं को भी हिलाना शुरू कर दिया। फिर इस मरीज की फिजियोथैरपी शुरू की गई। साथ ही मरीज के अटैंडेट ने भी उन कमांडस को अच्छे से फॉलो किया, जो उन्हें बताई गई थी।
मरीज की हालत में सुधार होने के बाद 21वें दिन मरीज को अस्पताल से छुट्टी दी गई। आज ये मरीज पूरे होश में है। खुद अपने हाथ से खाना खाती हैं। बातचीत भी करती हैं। उन्होंने कहा कि जब तक मरीज की सांसे चल रही होती है, तब तक कोई भी डाक्टर उम्मीद नहीं छोड़ता

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