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माता कालीस्थान मंदिर नाहन ,जानिए क्या है माता मंदिर का इतिहास

माता काली भगवान शिव की दश महाविद्याओं में से एक है जो प्राणी मात्र की सब कष्टों से छुटकारा दिलाती है।यह दिव्य एवं आलौकिक मंदिर नाहन शहर की शान है। यहां वैसे तो पूरा साल श्रृद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है परन्तु चैत्र तथा अश्विन नवरात्रि में तो यहां भक्तों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं।जय माता की के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है।माता यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करती है।प्राचीन एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संजोए अति शक्ति का प्रतीक मां काली के इस मन्दिर का निर्माण सम्वत् 1686 यानी सन् 1629 में महाराज विजय प्रकाश की कुमाऊं वाली रानी ने करवाया। इतिहासकार बताते हैं कि यह मां काली कुमाऊं वाली रानी के साथ कुमाऊं से ही आईं थीं। समय-समय पर इस मन्दिर का नवनिर्माण तथा जीर्णोद्धार कार्य होता रहा तथा आज़ यह भव्य तथा आलौकिक रूप में नाहन शहर की सुन्दरता को चार चांद लगा रहा है।  मन्दिर के साथ ही शिवमन्दिर में नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित किए गए हैं जबकि उनके अगली तरफ माता बाला सुन्दरी विराजमान हैं। भैंरों बाबा तथा बिल्कुल पीछे श्री गोगा जाहरवीर जी की माड़ी स्थापित की गई है। ब्रह्मलीन महात्माओं की समाधियों के साथ ऐतिहासिक हनुमान चबुतरा है। बताया जाता है कि पहले पहल अश्विन नवरात्रि में यहां मनुष्य बलि दी जाती थी परन्तु महाराज को यह पसंद नहीं थी। उन्होंने तत्कालीन महन्त महात्मा भडग नाथ से इस बारे बात की तथा महात्मा भड़ग नाथ ने माता को पशु बलि पर राजी कर लिया। इस प्रकार यहां भैंसे की बलि दी जाने लगी। महाराज ने उन्हें यहां महन्त के पद पर बैठाया गया। महात्मा भड़ग नाथ के बाद यहां महात्मा आम नाथ महन्त बने जो एक चमत्कारी महात्मा थे। उन्होंने अपने तपोबल से एक रात में ही नाहन के आसपास में नौ लाख आम के फलदार पेड़ पैदा कर दिए थे जिनका केन्द्र नौणी का बाग़ क्षेत्र था। उन्होंने मन्दिर क्षेत्र में जीवित ही समाधि ली थी।बाद में योगी मुक्ति नाथ ने अपने तपोबल से माता को बकरी की बलि पर मना लिया तथा वर्षों बाद बकरी भी जीवित छोड़ी जाने लगी। वर्तमान में माता पानी वाले नारियल तथा हलवे का प्रसाद ही ग्रहण करती है। यहां के महात्माओं में तोपनाथ, ज्वाला नाथ,वीरनाथ आदि यहां तथा श्री जगन्नाथ मंदिर के महन्त रहे। कुछ समय यहां पण्डित बालकिशन ने यहां पूजा अर्चना का कार्य किया। बाद में उनके वंशज भी यहां पूजा पाठ कार्य करते रहे हैं।    विक्रमी संवत् 2002 यानी सन् 1946 को अश्विन शुक्ल दशमी को महन्त भीष्म नाथ अस्थल अबोहर से लाकर दयालु नाथ को यहां महन्त की गद्दी पर बैठाया गया। उन्होंने ही यहां गोरखनाथ संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की जिसका संचालन देहरादून से गुरू रामराय झंडा जी द्वारा किया जाता था।महाराजा फतेह प्रकाश के समय में भी इसका जीर्णोद्धार कार्य करवाया गया। उन्होंने यहां हनुमान चबुतरा बनवाया जिस पर हर वर्ष अश्विन शुक्ल पक्ष नवमी को दरबार लगाया जाता था जिसमें महाराजा राजगुरु को भेंट देता था तथा राजगुरु महाराजा तथा दरबारियों को नादो देता था। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को राजमहल के गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिया गया खण्डा कालिस्थान मंदिर में विराजमान किया जाता था तथा इसकी नौं दिन लगातार पूजा अर्चना की जाती थी। नवमी को हवन के बाद राजपुरोहित महाराज को यह खण्डा वापस देते थे जिसे विशाल जुलूस की शक्ल में महाराज तथा राजपुरोहित राजमहल लाते थे। दोनों ओर असंख्य भीड़ महाराजा का जय-जयकार करती थी। वर्तमान में श्री अजय बहादुर सिंह जी इस प्रथा का निर्वहन कर रहे हैं।इस मन्दिर के नवीनीकरण का श्रेय ब्रह्मलीन महन्त कृष्णनाथ के भी जाता है जो काफी समय तक यहां महन्त के पद पर आसीन रहे। वर्तमान में इस मन्दिर की व्यवस्था संचालन के लिए महन्त किशोरी नाथ जी के सन्नीध्य में समिति गठित की गई है जिसमें प्रसिद्ध समाजसेवी योगेश गुप्ता तथा देवेन्द्र गुप्ता सहित अन्य गणमान्य लोग शामिल हैं।विशेष पर्वों पर यहां जागरण तथा भण्डारे आयोजित किए जाते हैं।
सुभाष चन्द्र शर्मा गांव खदरी डा बिक्रम बाग़ नाहन