आज विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने संघर्ष दिवस के रूप में मनाया और विश्वविद्यालय में उग्र प्रदर्शन किया। इस मौका पर गौरव ने 18 मार्च- संघर्ष दिवस” के मायने को समझाते हुए कहा कि आज से 8 वर्ष पूर्व 18 मार्च 2015 के दिन हिमाचल प्रदेश के तमाम कॉलेजों व विवि से लगभग 10000 छात्र अपनी मांगों को लेकर हिमाचल प्रदेश विधानसभा के समक्ष आए थे। ये तमाम छात्र पिछले 8 महीनों से लगातार अपने अपने कॉलेजों में अपनी मांगों के प्रति संघर्षरत थे। इस संघर्ष के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा छात्र समुदाय के ऊपर अंधाधुंध हमले किये गए। प्रदेश भर में छात्रों को प्रशासन व सरकारी तंत्र द्वारा धमकाया गया। विश्वविद्यालय व शिमला शहर में छात्रों के ऊपर प्रदेश सरकार के इशारे पर पुलिस प्रशासन द्वारा 15 दिनों के अंदर 8 बार लाठीचार्ज किया गया। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में 6 महीने के लिए धारा 144 लागू की गई जिसके अंतर्गत 4 से ज़्यादा लोग एक साथ चल भी नहीं सकते थे। विवि में किसी भी तरह के धरना प्रदर्शन करने की कोई अनुमति नहीं थी। विवि को पुलिस छावनी बना दिया गया था व परिसर में पुलिस की 4 बटालियन स्थायी तौर पर बैठा दी गई थी। SFI के लगभग 150 साथियों के ऊपर ज़बरदस्ती मुकद्दमे बनाए गए। SFI के 7 छात्र नेताओं को विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया व 4 छात्र नेताओं को 82 दिनों के लिए जेल की सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया। इसके बावजूद भी छात्र समुदाय अपनी मांगों पर अडिग रहा और लगातार संघर्ष के रास्ते आगे बढ़ते हुए प्रशासन व सरकार को चुनौती देता रहा। SFI ने प्रदेशभर के छात्र समुदाय के साथ मिलकर इस आंदोलन को जीतने के लिए हर तरह की कुर्बानी देते हुए बिना कोई समझौता किये तीखा संघर्ष किया।
इसके साथ साथ सह सचिव साथी संतोष ने कहा कि आज भी ज्यादा हालात सुधरे नहीं है आज भी छात्रों के सामने बहुत सी परेशानियां है।पिछले लंबे समय से रिवॉल्यूशन के रिजल्ट को लेकर लगातार प्रदेश भर में आंदोलनरत थी परंतु इसके बावजूद भी प्रशासन अभी तक आधे अधूरे परिणाम ही घोषित कर पाया है। जिसकी वजह से प्रदेशभर के अनेक छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। जो रिजल्ट घोषित भी हुए हैं उनमें ईआरपी की खामियों के चलते अनेक अनियमितताएं पाई गई है। एसएफआई ने ईआरपी सिस्टम में सुधार को लेकर भी अनेक बार प्रशासन को चेताया है परंतु प्रशासन इस ओर भी कोई सुध लेने को तैयार नहीं है।
साथ ही उन्होंने कहा कि नई सरकार के गठन होने पर हम उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस विश्वविद्यालयों को स्थाई कुलपति मिलेगा परंतु आज 3 महीने से अधिक समय होने के बावजूद भी विश्वविद्यालय में स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं की गई है । यह सरकार के इस विश्वविद्यालय के प्रति नकारात्मक रवैया को दर्शाता है। एसएफआई प्रदेश सरकार से मांग करती है कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर जल्द से जल्द स्थाई कुलपति की नियुक्ति की जाए।
एस एफ आई का मानना है कि इन सभी समस्याओं का मूल कारण छात्रों के पास अपनी समस्याओं को उठाने का मंच ना होना है। वह मंच एससीए था परंतु 2013 के बाद से ही प्रदेश भर में एससीए इलेक्शन पर प्रतिबंध लगा हुआ है। छात्रों को उनके जनवादी अधिकार से दूर रखने का काम बीजेपी तथा कांग्रेस दोनों ही सरकारों ने समान रूप से किया है। ऐसे में जब छात्र अपनी मांगों को लेकर प्रशासन के पास जाता है तो प्रशासन छात्र मांगों को गंभीरता से ना लेकर टालमटोल करने की कोशिश करता है। आज अगर इलेक्शन होते और छात्रों की अपनी एससीए होती तो छात्र प्रभावी ढंग से अपनी मांगों को सरकार व प्रशासन के पास उठा सकते थे और साथ ही मांगे ना मानने पर एससीए के बैनर तले प्रदेश भर के छात्र लामबंद होकर आंदोलन कर सकते थे। यही कारण है की सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की दोनों ही छात्रों को उनके जनवादी अधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं। इससे सरकारें प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में अपनी मनमानी बेरोकटोक करती रहेगी और छात्रों को उनकी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखने का कार्य करती रहेगी।
एसएफआई ने चेतावनी देते हुए कहा कि इन मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। यदि छात्र मांगों को सकारात्मक रूप से सुलझाया नहीं गया तो आने वाले समय के अंदर विश्वविद्यालय के साथ साथ पूरे प्रदेश के अंदर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी और अथॉरिटी का उग्र घेराव किया जाएगा। जिसका जिम्मेदार यूनिवर्सिटी प्रशासन तथा प्रदेश सरकार होगी।