रक्षाबंधन पर्व पर रियासतकाल से चली आ रही पतंगबाजी की परंपरा नाहन में आज भी जिंदा है। हालांकि पहले की अपेक्षा इसमें भारी गिरावट आई है। बावजूद इसके पतंगबाजी के शौकीन लोग रक्षाबंधन पर पतंग जरूर उड़ाते हैं।इन दिनों भी लोग रक्षा बंधन पर पतंगबाजी को लेकर पतंगरं खरीदने व् डोर को लेकर खरीददारी भी कर रहे हैं। लोगों के इस शौंक को जिंदा रखने में शहर के वार्ड नंबर आठ के रानीताल निवासी राजेश कुमार अपना अहम किरदार निभा रहे हैं। राजेश कुमार 20 साल से चरखियां बनाने के पुश्तैनी कार्य को कर रहे हैं।
इनसे पहले इनके दिवंगत पिता किशनचंद चरखियां बनाया करते थे। उनकी मृत्यु के बाद राजेश कुमार ने पतंबाजी के शौकीनों के लिए इस व्यवसाय को जिंदा रखा हुआ है। हालांकि इसमें अब कमाई नहीं रह गई है। बावजूद इसके रक्षाबंधन पर्व के आस-पास अपने हाथों से चरखियों का निर्माण जरूर करते हैं, ताकि शहर की पुरानी परंपराएं जिंदा रहें।
राजेश कुमार ने बताया कि पहले नाहन में रक्षाबंधन पर्व से दो महीने पहले ही रोजाना सैंकड़ों की तादाद में पतंगें उड़ाई जाती थी। यह सिलसिला रक्षाबंधन के बाद भी कई दिन तक चलता था। शहर की कोई छत्त ऐसी नहीं रहती थी जहां युवाओं के झुंड के झुंड पतंबाजी न करते हों। लेकिन अब इंटरनेट युग में यह हुनर खो सा गया है। रक्षाबंधन को चंद रोज शेष हैं, लेकिन शहर में पतंगें उड़ नहीं रही।
स्थानीय इंद्रजीत ने
बतायाकि पहले की अपेक्षा पतंगबाजी में कमी आयी है और एक परम्परा जो वर्षों से चली आ रही है आधुनिकता में कम होती जा रही है।
इस्माइल ने बतायाकि रियासतकाल से रक्षाबंधन पर पतंगबाजी होती आयी है लेकिन अब इसमें कमी आ रही है।
बाइट्स :शहर के अन्य लोगो ने भी बतायाकि अब नाहन में पतंगबाजी कम हो रही है जिसका कारण चाइनीज डोर भी है और अन्य मनोरंजन के साधन भी हैं।
उल्लेखनीय हैकि राजेश कुमार की अब तक चरखी की बिक्री भी नहीं हुई है, लेकिन वह फिर भी चरखियां बना रहे हैं। इससे उनको आत्म संतुष्टि मिलती है। बहरहाल राजेश कुमार को उम्मीद है कि रक्षाबंधन पर्व पर ही सही लेकिन लोग पुरानी रिवायत को कायम रखने के लिए पतंगबाजी जरूर करेंगे।