पर्यावरण की दुहाई के बीच हार गया आम का पेड़

पर्यावरण बचाओ ,पेड़ लगायो  के नाम पर हर वर्ष लाखों रुपियकी राशि  सरकार वृक्षारोपण पर लगा रही है। अन्य लोग भी थोड़ी से गर्मी पड़ने पर चिल्लाने लगे थे की नाहन  में बहुत गर्मी हो गयी है। कोरोना काल  में ऑक्सीजन का महत्व कुछ समझ आया था। लेकिन निजी स्वार्थों ,आधुनिकता की दौड़ ने सब कुछ भुला दिया और अपने आराम के लिए फिर से वृक्ष कटान आरम्भ हो गया। नाहन में मंदिर कालीस्थान के साथ बने उपवन में अब पार्किंग बनाने की तैयारी चल रही है जिसके लिए वहां खड़े वृक्षों को काटने का कार्य शुरू हो गया है। आज एक हादसा भी इस वृक्ष कटान से हो गया जब काटा  वृक्ष चलती गाड़ी पर जा गिरा वो काफी नुकसान हो गया है। गनीमत रही की कोई जनि नुकसान नहीं हुआ। हाँ इस घटना में अभी कुछ दिन पहले लोगो को मीठे मीठे आम खिलाने  वाला आम  का पेड़ जरूर शहीद हो गया। यहां ध्यान देने वाली बात हैकि नाहन  में हरियाली खत्म हो चुकी है थोड़ी बहुत जो बची है वो पार्किंग ,भवन निर्माण की भेंट चढ़ने जा रही है। ऐसे में वन महोत्सव मनाने ,पर्यावरण पर बड़ी बड़ी बातें करने का क्या औचत्य रह जाता है। क्या पार्किंग इतनी जरूरी हैकि इस हरे भरे उपवन का विनाश किया जा रहा है। कैसे इस तरह वृक्ष कटान की अनुमति दी जा सकती है। एक और हम वृक्ष बचाने  के लिए प्रति वर्ष लाखों की राशि खर्च रहे हैं और दूसरी तरफ सुविधा के नाम पर वृक्षों का कटान चला हुआ है। ये सब गंभीर प्रश्न हैं जिनके जवाब आने वाली पीढ़ी भी पूछेगी। कालीस्थान तालाब के पास बना एक पार्क पहले ही आधुनिकता की भेंट चढ़ चूका है। ये प्रश्न गंभीर हैं और चिंतन की जरूरत है कि  कहीं  हम सुविधाओं के नाम पर हरियाली खत्म कर  रहे हैं क्या यह ठीक रहेगा। सोचियेगा जरूर।

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