Sirmaur Uday

विचार से विकास

जिला सिरमौर के राजगढ़ गिरिपार की प्रसिद्ध हाब्बन की पहाड़ियों में साया गांव में भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल देवता का आलौकिक मन्दिर

जिला सिरमौर के राजगढ़ गिरिपार की प्रसिद्ध हाब्बन की पहाड़ियों में साया गांव में भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल देवता का आलौकिक मन्दिर स्थित है। यह स्थान शिरगुल देवता का प्राकट्य स्थल भी है। साया राजगढ़ -हाब्बन रोड़ पर स्थित है।यहां पूरा साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है परन्तु साल की चार बड़े साजियों तथा दीपावली एवं प्रतिपदा को यहां भक्तों की टोलियां आती हैं । शिरगुल सिरमौर, सोलन तथा शिमला जिला के नौं क्षेत्रों के ईष्ट हैं जिन्हें नौतबीन कहा जाता है।
भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल देवता का प्राकट्य लगभग एक हजार वर्ष पूर्व साया की इस पवित्र भूमि पर हुआ। इस क्षेत्र के शासक महाराज भूखण्ड इनके पिता थे।
बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण शिरगुल तथा उनके भाई चन्द्रेश्वर अपने मामा के घर मनौण में रहने लग गए। वहां इनकी मामी ने इन पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। एक दिन शिरगुल तथा चन्द्रेश्वर खेतों में पशु चरा रहे थे तथा वहीं खेत में किसान हल जोत रहे थे। शिरगुल की मामी किसान के लिए तो अच्छा भोजन लाईं परन्तु दोनों भाइयों के लिए मरी हुई मक्खी तथा कीड़े मिले सत्तु ले आई। उन्होंने सत्तु के पिण्ड खानें से इंकार कर दिया। मामी की प्रताड़ना से तंग आकर शिरगुल ने फागु में जमीन पर पांव मारा जिससे वहां पानी की जलधारा प्रकट हुई जो आज भी वहां मौजूद हैं तथा उसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। उन्होंने पानी ग्रहण कर स्वयं चूड़धार जाकर तपस्या करने लगे।
कालांतर में शिरगुल सुत के व्यापारी बन कर दिल्ली पहुंचे तथा वहां वे दैविक चमत्कार दिखाने लगे। दिल्ली में उस समय मुगलों का शासन था। शिरगुल देवता को वहां पकड़ कर चमड़े की बेड़ियों में जकड़ कर क़ैद में डाल दिया गया।
वहां उनकी मुलाकात भगायणी देवी से हुई जो वहां साफ सफाई का काम करती थी। शिरगुल देवता ने भगायणी देवी के माध्यम से अपने परम् मित्र राजस्थान में श्री गोगा जाहरवीर को सहायता के लिए संदेश भेजा। श्री गोगा जाहरवीर तत्काल दिल्ली पहुंचे तथा भंगाईनी देवी से जानकारी लेकर शिरगुल देवता की चमड़े की बेड़ियां काट दी। वहां से वह भंगाईनी देवी को साथ लेकर हरिपुरधार की पहाड़ी पर सर्वशक्तिमान करते हुए देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया। शिरगुल देवता स्वयं चूड़धार के पर्वत शिखर पर पहुंच कर घोर तपस्या में लीन हो गए। कठिन तपस्या के फलस्वरूप अन्ततः उन्हें शिवलोक की प्राप्ति हुई।
वर्तमान में सिरमौर, सोलन तथा शिमला जिला में कई स्थानों पर शिरगुल देवता के मन्दिर हैं । लेख के साथ साथ साया, चूड़धार,धगेडा के चम्बा तथा बाडथल मंधाना के     बंजौण में शिरगुल देवता के मन्दिरों के फोटो संलग्न किए गए हैं।
लेखक -सुभाष चन्द्र शर्मा, खदरी बिक्रम बाग़

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