हिमाचल प्रदेश में आज लगभग हर घर में सरकार द्वारा प्रदेश के कर्मचारियों को वेतन न दिए जाने का मामला सेवानिवृत कर्मचारियों को पेंशन न दिए जाने का मसला गरमा गरम बहस का विषय बना हुआ है।
कुछ लोग जो असंगठित क्षेत्र में या निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं वे लोग अपना दुख भी इस चर्चा के साथ साझा कर रहे हैं कि उन्हें भी कभी 10 तारीख को ,कभी 15 तारीख को तो कभी महीने के अंत में वेतन मिलता है। एक वर्ग ऐसा भी है जो इस बात से खुश है कि चलो सरकारी कर्मचारियों को भी निजी सेक्टर में काम करने वालों लोगों के दुख दर्द का एहसास तो हुआ।
जब तक वेतन और पेंशन नहीं मिलती हिमाचल में यह मुद्दा छाया रहेगा और हो सकता है आने वाले समय में इस तरह की चर्चाएं बार-बार होती रहे क्योंकि प्रदेश की वित्तीय स्थिति खराब है मुख्यमंत्री कई बार इस बात को कह चुके हैं। पूर्व में मुख्यमंत्री रहे अपना गरदोगुबार वर्तमान सरकार पर फेंक कर अब खुश हो गए हैं कि अपना बोझ दूसरे के कंधे पर लाद दिया है। अब उन्हें नई सरकार को कोसने का आसान मौका मिल गया है ।और यही काम पिछले भाजपा कार्यकाल में इस बार जो सरकार में लोग आए वे कर रहे थे और यह क्रम अगले 5 वर्ष में भी यूं ही दोहराता जाएगा । हिमाचल के दूर दृष्टि वाले नेताओं के अभाव में हिमाचल ऐसे ही हारता चला जाएगा और हो सकता है आने वाले समय में हमारे हालात निकटवर्ती राज्यों से भी बदतर हो जाएं।
हमारे प्रदेश में दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने-अपने स्तर पर आत्म चिंतन और सामूहिक तौर पर आत्म मंथन करने की आवश्यकता है ।भविष्य की आवश्यकताओं को लेकर ऐसे युवाओं नेताओं को तैयार करने की जरूरत है जो वित्तीय व्यवस्थाओं वित्तीय संसाधनों के बारे में अच्छी पकड़ रखते हों जो वित्तीय संसाधनों के दोहन के बारे में समझ रखते हैं जो प्रदेश के विकास को आगे ले जाने का विजन रखते हों ।
पिछली सरकार 56 हजार करोड़ के लगभग का कर्ज छोड़ गई वर्तमान सरकार ने इसे 90 करोड़ के लगभग पहुंचा दिया ऐसा कब तक चलता रहेगा। राजनीतिक दल नूरा कुश्ती खेलने रहेंगे। एक दूसरे को कोसते रहो और पांच-पांच साल बारी-बारी से राज करो ।
दोनों राजनीतिक दल हिमाचल प्रदेश में भलीभांति जानते थे कि सरकार पर कितने हजारों करोड़ का कर्ज चढ़ा हुआ है। इसके बावजूद वर्तमान सरकार ने ऐसे लोक लुभावने वायदे किए जिन्हें पूरा करना अब उनके गले की फांस बन चुका है इसलिए अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए किसी न किसी को तो बलि का बकरा बनाना पड़ेगा।
दोनों राजनीतिक दल हिमाचल प्रदेश में झूठ की राजनीति और झूठ का प्रचार कर रहे हैं और हिमाचल की जनता को ठग रहे हैं। हिमाचल प्रदेश को आर्थिक तौर पर मजबूत राज्य बनाने का बेरोजगारों को रोजगार देने का कोई भी रोड मैप किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है।
एक समय था जब कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर बड़े नीतिगत मुद्दों के लिए विशेषज्ञों की राय प्रधानमंत्री भी अपने पार्टी कार्यक्रमों के माध्यम से लिया करते थे अब वह व्यवस्थाएं समाप्त हो गई हैं।
अब राजनीतिक दलों में विशेषज्ञों का महत्व समाप्त हो गया है और जोड़-तोड़ में कुशल नेताओं की जय जयकार होने लगी है। राजनीतिक दल किसी भी रास्ते से सत्ता तक पहुंचाना चाहते हैं चाहे वह मार्ग कितना ही लोकतांत्रिक क्यों न हो।
जहां तक हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने का और पेंशनरों को पेंशन देने का मामला है सरकार का कर्तव्य है कि आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था में कर्मचारियों से खूब डटकर काम लें अपने नीतियों के मुताबिक काम लें ,ईमानदारी से काम करवाएं और आम जनता के काम समयानुसार पूरे हों यह सुनिश्चित करें। कर्मचारियों में ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा सुनिश्चित करें।
इसके साथ-साथ सरकार का यह भी कर्तव्य है कि काम पूरा होने पर उन्हें निश्चित समय पर वेतन भी मिले। अगर सरकार ही पहली तारीख की जगह 10 तारीख या 15 तारीख को वेतन देती है तो निजी क्षेत्र में भी इसका निश्चित तौर पर प्रभाव पड़ेगा । निजी क्षेत्र आज 10 या 15 तारीख को वेतन दे रहे हैं हो सकता है अब 20 या 30 तारीख को वेतन दें और यह पूरी सामाजिक व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। सरकारी वेलफेयर स्टेट होती है और आदर्श व्यवस्था के लिए बनाई जाती है। समाज को आगे ले जाने के लिए कोई ना कोई आदर्श पैमाना स्थापित करना होगा यह पैमाना सरकारी तौर पर ही बनाया जा सकता है अगर सरकारें इस जिम्मेदारी से पीछे हट रही हैं तो निश्चित तौर पर पूरे समाज पर इसका प्रभाव पड़ेगा।
धर्मेंद्र ठाकुर पूर्व अधिकारी सूचना जनसंपर्क विभाग