नाहन उपमण्डल की देवनी पंचायत के ढेला गांव में माता मांत्रा देवी की अति प्राचीन पत्थर की प्रतिमाएं मिली हैं। यहां चिल्ले के पेड़ के नीचे यह मूर्तियां स्थापित हैं। वास्तव में ढेला गांव के प्रसिद्ध समाजसेवी मनीष राणा उर्फ राजा चाचा बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों से माता सपने में उन्हें वहां अपनी मौजूदगी का एहसास करा रही थी तथा वह निरंतर इस स्थान की खोज में लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि उन्हें यहां यह आलौकिक स्थान मिला तथा धनतेरस की पावन बेला पर उन्होंने इस स्थान को समतल बनाना शुरू कर दिया है।
इस बारे गांव के सबसे बुजुर्ग चमेल सिंह राणा,जो अपने जीवन के लगभग पिचान्वें बसंत देख चुके हैं, ने बताया कि जब वह छोटे थे तो उनके पूर्वज यहां अपने पशुधन की रक्षा व वृद्धि के लिए दूध, घी तथा हलवे का प्रसाद चढ़ाया करते थे।वह बताते हैं कि इन प्रतिमाओं को माता मांत्रा देवी की कहा जाता था। गौरतलब है कि माता मांत्रा देवी का मूल मन्दिर यहां से जंगल के रास्ते लगभग दस किलोमीटर दूर है तथा वहां से ही मां की लाई गई एक मूर्ति यहां से लगभग दो किलोमीटर दूर बिक्रम बाग़ पंचायत के पीपल वाला में भी स्थित है। संभवतः यह मूर्तियां उसी मूल मन्दिर से ही लाईं गई हों।
माता मांत्रा देवी मां लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है जिसकी उत्पत्ति मां लक्ष्मी के बदरी के पेड़ के रूप में स्थापित होने के बाद देवताओं द्वारा मन्त्रों के उच्चारण से हुई थी।
सतयुग में भगवान विष्णु सिन्धु बन क्षेत्र में तपस्या में लीन हो गए तथा उनका रंग धूप के कारण बिल्कुल काला पड़ गया था। माता लक्ष्मी उन्हें ढुंढती हुई जब वहां पहुंची तो भगवान की यह अवस्था देखकर वह उनको छाया करने के लिए बदरी का पेड़ बन गई।
देवताओं द्वारा चलाए जा रहे यज्ञ की सम्पन्नता के लिए भगवान विष्णु की संगिनी के लिए मां लक्ष्मी के छाया रूप के लिए मां मांत्रा देवी की उत्पत्ति हुई थी।
लेखक -सुभाष चन्द्र शर्मा खदरी ,बिक्रम बाग़